EPFO to FD Rate Change: 1 जून से प्रभावी प्रमुख वित्तीय अपडेट

EPFO to FD Rate Change: 1 जून से प्रभावी प्रमुख वित्तीय अपडेट! 1 जून, 2025 से बचत और निवेश के दो सबसे भरोसेमंद साधनों में अहम बदलाव देखने को मिलेंगे। एक ओर कर्मचारी भविष्य निधि के खाते में मिलने वाली ब्याज दर को जारी रखा गया है, वहीं ही बैंक सावधि जमा (FD) पर मिलने वाली दरों में हाल के रेपो रेट परिवर्तनों के असर के मुताबिक समायोजन किया गया है। इन दोनों विकल्पों के बीच अंतर को जानना और समझदारी से फैसला लेना हर निवेशक के लिए बेहद जरूरी है, ताकि अपनी लंबी तथा मध्यम अवधि की योजनाओं को साकार किया जा सके।

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कर्मचारी भविष्य निधि की ब्याज दर स्थिर

कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) खाते पर मिलने वाली ब्याज दर को इस वित्त वर्ष के लिए फिर से बढ़त देकर फिक्स किया गया है। इस दर का सारा सत्र अप्रैल 2024 से लेकर मार्च 2025 तक के बैलेंस पर लागू रहेगा, और जुलाई में फाइनल क्रेडिट के रूप में खाताधारकों को लाभान्वित करेगा। चूंकि इस खाते पर मिलने वाला ब्याज आयकर से मुक्त रहता है—बशर्ते आपकी सालाना जमा राशि एक निर्धारित सीमा के भीतर हो—इसलिए यह उन कर्मचारियों के लिए सबसे आकर्षक बचत साधन बना हुआ है, जो लंबी अवधि में सुरक्षित और टैक्स-फ्री रिटर्न चाहते हैं।

सावधि जमा पर नई दरें

हाल के समय में केंद्रीय बैंक द्वारा रेपो रेट में कटौती आने के बाद लगातार कई बैंकों ने सावधि जमा यानी FD पर मिलने वाली ब्याज दरों में कमी की घोषणा की है। इसके पीछे सरल कारण यही है कि उनके फंड का खर्च कम हुआ है, इसलिए अब वे जमाकर्ताओं को मिलने वाली दरें घटा रहे हैं। इस बदलाव से पहले तक कुछ बैंकों में लंबी अवधि के लिए आकर्षक दरें मिल रही थीं, लेकिन 1 जून से उन दरों में दो से तीन दशमलव अंकों की कमी देखी जाएगी। वरिष्ठ नागरिकों के लिए मिलने वाली बूस्टर दरें भी अब थोड़ी नरम हो जाएँगी, बावजूद इसके कि अलग से मिलने वाली अतिरिक्त दरें कुछ राहत दे पाएंगी।

सावधि जमा विकल्पों के बीच अंतर

EPF और FD दोनों ही सुरक्षित निवेश माने जाते हैं, पर दोनों में मौलिक अंतर विद्यमान है। जहां EPF में जमा राशि के ऊपर मिलने वाला रिटर्न निश्चित और टैक्स-फ्री होता है, वहीं FD में मिलने वाला ब्याज आयकर के अधीन आता है और उस पर कटौती भी लगती है यदि आपकी कुल आयकर सीमा पार कर जाती है। EPF में सालों तक लॉक-इन अवधि होती है, जो दीर्घकालिक बचत के लिहाज से मुफीद है, जबकि FD में आप अपनी जरूरत और योजना के अनुसार तीन महीने से लेकर पाँच साल तक की अवधि चुन सकते हैं। दूसरी ओर FD की दरें समय-समय पर बदलती रहती हैं, इसलिए अगर किसी खास अवधि के लिए उच्च रिटर्न मिल रहा हो, तो जल्दी से उस दर पर जमा कर लेना बेहतर होता है।

सही विकल्प चुनने की रणनीति

निवेश का निर्णय लेते समय सबसे पहले अपनी आवश्यकता और योजना की अवधि को ध्यान में रखना चाहिए। यदि आपका लक्ष्य पेंशन या रिटायरमेंट के बाद के खर्चों के लिए बचत करना है, तो EPF एक स्थिर और टैक्स-फ्री रिटर्न देने वाला साधन साबित होगा। वहीं अगर आपके पास मध्यम अवधि के लिए कुछ अतिरिक्त धनराशि है, जिसे आप एक या दो साल में बढ़ा कर सुरक्षित रूप से वापस पाना चाहते हैं, तो FD का चयन उचित रहेगा। हालाँकि सावधि जमा पर मिलने वाली दरें घट रही हैं, पर फिर भी यदि सही समय पर और सही अवधि के लिए लॉक-इन किया जाए तो अपेक्षाकृत बेहतर रिटर्न मिल सकता है।

लिक्विडिटी पर विचार

जहाँ EPF में धन निकलवाने के लिए लंबी औपचारिकताएँ और लॉक-इन अवधि होती है, वहीं FD को सब कुछ तय अवधि पूरी होने पर या असमय बंद करवाने पर कुछ कटौती के साथ निकाला जा सकता है। इसलिए यदि आपको किसी आकस्मिक खर्च के लिए जल्दी नकदी चाहिए, तो FD लिक्विडिटी के लिहाज से बेहतर विकल्प है। वहीं EPF उस धन के लिए आदर्श है, जिसे आप रिटायरमेंट मनी या बड़े आर्थिक लक्ष्यों—जैसे घर खरीदना या बचपन के बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करना—के लिए बचा कर रखना चाहते हैं।

कर लाभ और बचत का पूरा हिसाब

ब्याज दरों में बदलाव के साथ निवेशकों को कर लाभ और कुल रिटर्न का पूरा हिसाब लगाकर ही आगे बढ़ना चाहिए। EPF पर मिलने वाला रिटर्न टैक्स-फ्री होता है, बशर्ते आपकी कुल जमा सीमा निर्धारित मान से अधिक न हो। इसके विपरीत FD पर मिलने वाली ब्याज आय आपकी कुल आय में जुड़कर उस पर कर देयता बढ़ा सकती है, और उस पर टीडीएस कटौती भी लागू होती है। इसलिए यदि आपकी आमदनी अधिक है और आप टैक्स स्लैब में हैं, तो EPF ज्यादा फायदेमंद साबित होगा।

निष्कर्ष

1 जून, 2025 से लागू होने वाले ब्याज दर परिवर्तनों ने EPF और FD दोनों के आकर्षण के पहलुओं को और स्पष्ट किया है। कर्मचारी भविष्य निधि में निर्दिष्ट दर पर दस्तक देने वाला स्थिर और टैक्स-फ्री रिटर्न दीर्घकालिक निवेशकों के हित में रहेगा, जबकि सावधि जमा पर समय-समय पर बदलती दरों का लाभ उठाकर मध्यम अवधि की योजनाएँ सफल बन सकती हैं। निवेश का फैसला करते समय अपनी पूंजी की अवधि, कर बचत की जरूरत, और लिक्विडिटी की प्राथमिकता को ध्यान में रखें। इस तरह आप अपनी वित्तीय योजनाओं का बेहतर संतुलन बना पाएंगे और अपेक्षित रिटर्न हासिल कर सकेंगे।

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